मेहनत करने वालो की कभी हार नहीं होती : पढ़िए M D H मसालों की कामयाबी का सफरनामा

कहावत है मेहनत करने वालो की कभी हार नहीं होती। अगर नदी का वेग प्रबल है तो वो अपना रास्ता बना ही लेती है , ऐसे ही एक कड़ी मेहनत और संघर्ष की कहानी है , MDH मसलों के संस्थापक महाशय धर्मपाल गुलाटी की , वही MDH के मसाले जिनका स्वाद हम सब की जुबान पर है।
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महाशय धर्मपाल गुलाटी का जन्म 27 मार्च 1923 को सियालकोट (पाकिस्तान) में महाशय चुन्नीलाल और चनन देवी के घर पर हुआ। बचपन से ही इनका पढ़ाई में कोई ध्यान नहीं था। पिता ने इन्हे स्कूल भेजा पर इन्होंने पांचवी की परीक्षा से पहले ही पढाई छोड़ दी । इसके बाद इनके पिताजी ने इनको अलग अलग तरह की करीब 50 नोकरियाँ दिलवाई पर ये एक भी जगह काम नहीं कर पाए। अंत में हार कर इनके पिताजी ने इन्हे family business में साथ कर लिया ।  सियालकोट उस समय अपनी मिर्च के लिए बहुत मशहूर था यही वजह थी के इनकी मसालों की  दूकान जो वे 1919 से  \”महाश्यां दी हट्टी \”के नाम से चला रहे थे; बहुत अच्छी चल रही थी ।  भारत के विभाजन के समय सियालकोट -पाकिस्तान का हिस्सा बन गया। वहां हिन्दुओं का रहना मुश्किल हो गया था इसी लिए अपने परिवार को लेकर वे 7  सितम्बर 1947 को  नानक डेरा (भारत) पहुंचे तब वे 23 वर्ष के थे । दिल्ली में इनके एक रिश्तेदार रहते थे इसी लिए ये करोलबाग़ दिल्ली आ गए।

 

उस समय इनके पास केवल 1500 रुपए थे और ज़िम्मेवारियाँ बहुत थी। कमाई का कोई साधन जुटना बहुत ज़रूरी था इसे लिए इन्होने एक 650 रुपये का उन्होंने तांगा ख़रीदा और न्यू दिल्ली स्टेशन से कुतब रोड और करोल बाग़ से बड़ा हिन्दू राव तक चलाने लगे ।  अपने तांगे पर ये लोगों को 2 आने (एक रूपए का 1 /16 भाग) में सवारी करवाया करते थे।

 

2 महीने तक तांगा चलाने के बाद एक ऐसा दिन आया जब इनको एक भी सवारी नहीं मिली वे दिन भर \”एक सवारी का 2 आना \” चिल्लाते  रहे और उस दिन इन्होंने विचार कर तांगा बेच दिया और  घर पर ही मसाले बनाने और बेचने का काम शुरू किया , इनके बनाए मसाले शुद्ध और pure होते थे और इसी लिए इन्हें जल्दी ही प्रसिद्धि और ज़्यादा काम मिलने लगा , काम ज़्यादा होने के चलते इन्होंने मसाले पिसवाने के लिए चक्की में देना शुरू किया।  एक दिन महाशय ने चक्की के मालिक को मसलों में मिलावट करते हुए पकड़ा , इनका विश्वास दूसरों पर खत्म होने लगा इसी लिए इन्होंने 14 X 9 फ़ीट का एक खोखा (हट्टी) खरीदा  और  मसाला बेचना शुरू किया। काम अच्छा चल निकला।

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जब इन्होंने इतनी कमाई कर ली के दाल सब्ज़ी का गुज़ारा सही से होने लगा तो इन्होंने व्यवसाय को बढ़ाने के लिए 1953 में चांदनी चौक में एक दूकान कराए पर ली उसके बाद 1959 में किर्ति नगर में अपनी factory बनाने के लिए plot खरीदा।  इसके बाद महाशय धरमपाल ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।

 

महाशय धरमपाल ने अपनी मेहनत और काबिलियत के दम पर केवल MDH जैसा बड़ा नाम ही नहीं बल्कि Mata Chanan Devi Hospital के नाम से 300 बिस्तरे वाला चैरिटेबल हस्पताल शुरू किया जो आज 5 एकड़ में फैला हुआ है;  साथ ही शिक्षा को आगे बढ़ावा देने के लिए करीब 20 School  भी शुरू करवाए जिनमें प्रमुख नाम हैं :-

 

MDH International School

Mahashay Chunnilal Saraswati shishu Mandir

Mata leela wati kanya vidhayala

Mahashay Dharmpal Vidhya Mandir 

 

महाशय धरमपाल का दर्शनशास्त्र यही कहता है की, “दुनिया को वह दे जो आपके पास सबसे बेहतरीन हो, और आपका दिया हुआ बेहतरीन अपने आप वापिस आ जायेगा.”

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