संत कबीर के वाणी से जाने जीवन का मर्म

कबीर (Kabir) ये नाम किसी धर्म या जाति को नहीं बताता. ये नाम एक व्यक्तित्व से परिचय कराता है. वो व्यक्तित्व जो 15 वीं सदी में भी आज के पढ़े लिखें लोगों से अधिक आधुनिक था.

ये आश्चर्य ही है कि 15 वीं सदी के एक अनपढ़ व्यक्ति कबीर (Kabir) की सोच आज भी कितनी प्रासंगिक है.  एक जुलाहे का काम करने वाले इस निरक्षर व्यक्ति पर बहुत से लोग डॉक्टरेट कर चुके हैं.

आज कबीर के ऐसे ही कुछ दोहों से आपका परिचय कराते है. जिन्हें पढ़ कर जीने की सही राह समझ में आती है.

  • हिन्दू कहें मोहि राम पियारा, तुर्क कहें रहमाना,

           आपस में दोउ लड़ी-लड़ी  मुए, मरम न कोउ जाना।

अर्थ : कट्टरपंथी विचार धारा वाले लोगो के लिए सबक है ये दोहा. यहाँ कबीर (Kabir) कहते हैं कि हिन्दू राम के भक्त हैं और तुर्क (मुस्लिम) को रहमान प्यारा है. इसी बात पर दोनों लड़-लड़ कर मौत के मुंह में जा पहुंचे, तब भी दोनों में से कोई सच को न जान पाया.

  • साईं इतनी दीजिए, जा में कुटुंब समाए
    मैं भी भूखा न रहूं, साधू न भूखा जाए

अर्थ : हमारे जीवन का अंत तो निश्चित है लेकिन इच्छाओं का नहीं. ऐसे में इन शब्दों को पढ़कर कितना संतोष मिलता है. इस दोहे में कबीर (Kabir) ईश्वर से सिर्फ उतना ही मांगते हैं जिसमें पूरा परिवार का खर्च चल जाए. न कम और न ज्यादा. कि वे भी भूखे न रहें और दरवाजे पर आया कोई साधू-संत भी भूखा न लौटे.

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Image Credit: World of Coins

  • बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलया कोय
    जो मन खोजा आपना, तो मुझसे बुरा न कोय

अर्थ : किसी की बुराई करना आज कल favorite time पास बन गया है. शायद ये पढने के बाद आप ऐसा न करने का मन बना लें. इस दोहे का अर्थ है कि जब मैं पूरी दुनिया में खराब और बुरे लोगों को देखने निकला तो मुझे कोई बुरा नहीं मिला. और जो मैंने खुद के भीतर खोजने की कोशिश की तो मुझसे बुरा कोई नहीं मिला.

 

  • चिंता ऐसी डाकिनी, काट कलेजा खाए
    वैद बिचारा क्या करे, कहां तक दवा लगाए

अर्थ : हम हर समय किसे न किसी चिंता में खोए रहते है. ये दोहा इसी चिंता को दूर करने की बात करता है.  इसका मतलब है कि चिंता सबसे  खतरनाक चोर है, इससे कलेजे में दर्द उठता है. इस दर्द की दवा किसी भी चिकित्सक के पास नहीं होती.

 

  • कबीर सो धन संचे, जो आगे को होय

          सीस चढ़ाए पोटली, ले जात न देख्यो कोय.

अर्थ : जिन लोगो को आवश्यता से अधिक जोड़ने की आदत है, इस दोहे में उन पर व्यंग्य किया गया है. कबीर (Kabir) कहते हैं कि उस धन को इकट्ठा करो जो भविष्य में काम आए. सर पर धन की गठरी बाँध कर ले जाते तो किसी को नहीं देखा.

Real Life Examples who fought from failure and got success

 

  • बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर
    पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर

अर्थ : सही मायनों में सफल व्यक्ति वो ही है जो अपनी विन्रमता नहीं छोड़ता. ये दोहा इसी विषय में हैं. यहाँ  कबीर कहना चाहते हैं कि सिर्फ बड़ा होने से कुछ नहीं होता. बड़ा होने के लिए विनम्रता जरूरी गुण है. जिस प्रकार खजूर का पेड़ इतना ऊंचा होने के बावजूद न पंथी को छाया दे सकता है और न ही उसके फल ही आसानी से तोड़े जा सकते हैं.

 

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