भगवद गीता में छुपा लाइफ मैनेजमेंट का सन्देश भाग – 2

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अपने पिछले भाग में पढ़ा गीता के सन्देश हमारे सामान्य जीवन में कितनी  शिक्षा मिल रही है आइये जानते है इन श्लोको में दिए गए सन्देश .

6-

यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जन:।
स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते।।

अर्थ- श्रेष्ठ पुरुष जैसा आचरण करते हैं, सामान्य पुरुष भी वैसा ही आचरण करने लगते हैं।
श्रेष्ठ पुरुष जिस कर्म को करता है, उसी को आदर्श मानकर लोग उसका अनुसरण करते हैं।

मैनेजमेंट सूत्र-

यहां भगवान श्रीकृष्ण ने बताया है अपने धर्म के अनुसार कर्म करने वाला व्यक्ति ही सफलता को प्राप्त कर पाता है। और अपने कर्म को करते हुए श्रेष्ठता प्राप्त करता है। और श्रेष्ठ मनुष्य जैसा व्यव्हार करते है सामान्य लोग भी उसका अनुसरण करते है। और लोग उनके दिखाए मार्ग पर चलते है। वो समाज में रोल मॉडल बन जाते है। उदाहरण के तौर पर अगर किसी संस्थान में उच्च अधिकार पूरी मेहनत और निष्ठा से काम करते हैं तो वहां के दूसरे कर्मचारी भी वैसे ही काम करेंगे, लेकिन अगर उच्च अधिकारी काम को टालने लगेंगे तो कर्मचारी उनसे भी ज्यादा आलसी हो जाएंगे।

7-
न बुद्धिभेदं जनयेदज्ञानां कर्म संगिनाम्।
जोषयेत्सर्वकर्माणि विद्वान्युक्त: समाचरन्।।

अर्थ- ज्ञानी पुरुष को चाहिए कि कर्मों में आसक्ति वाले अज्ञानियों की बुद्धि में भ्रम अर्थात
कर्मों में अश्रद्धा उत्पन्न न करे किंतु स्वयं परमात्मा के स्वरूप में स्थित हुआ
और सब कर्मों को अच्छी प्रकार करता हुआ उनसे भी वैसे ही करावे।

 

मैनेजमेंट सूत्र –
प्रतिस्पर्धा के युग में जहाँ सब एक दूसरे को पछाड़ने में लगे है। ऐसे में कुछ चालाक लोग अपना काम पूरा कर लेते है। और साथ वाले लोगो को उनका काम न करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं या काम के प्रति उसके मन में लापरवाही का भाव भर देते हैं। तो हमें अपने कार्यो को किसी की देखा देखी नहीं करना चाहिए , बल्कि अपने काम अधिक निष्ठां से करे और जो आपको हतोत्साहित करता है उसे भी अच्छा काम करने की प्रेरणा दे। आपका कर्म की आपकी पहचान है। जो लोग अपने काम से प्यार करते है उनका सब जगह सम्मान होता है।

8-
ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम्।
मम वत्र्मानुवर्तन्ते मनुष्या पार्थ सर्वश:।।
अर्थ- हे अर्जुन। जो मनुष्य मुझे जिस प्रकार भजता है यानी जिस इच्छा से मेरा स्मरण करता है,
उसी के अनुरूप मैं उसे फल प्रदान करता हूं। सभी लोग सब प्रकार से मेरे ही मार्ग का अनुसरण करते हैं।

 

मैनेजमेंट सूत्र-

इस श्लोक के माध्यम से भगवान श्रीकृष्ण बता रहे हैं। सब कुछ हमारी सोच पे निर्भर करता है। हम जैसा सोचते है हम वैसे ही बन जाते हैहमारा लक्ष्य ही परमात्मा है। जैसे एक संत मोक्ष के लिए भगवान को याद करता है। और अगर वह कृतसंकल्प होकर इस पथ पे निरंतर चलता है तो उससे लक्ष्य प्राप्ति हो जाती है। यही बात हम के जीवन पर लागु है। अर्थात सब कुछ हमारे मन की इच्छा पर निर्भर है। कंस ने सदैव भगवान को मृत्यु के रूप में स्मरण किया। इसलिए भगवान ने उसे मृत्यु प्रदान की। हमें परमात्मा को वैसे ही याद करना चाहिए जिस रुप में हम उसे पाना चाहते हैं।

9-
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतु र्भूर्मा ते संगोस्त्वकर्मणि ।।

अर्थ- भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि
हे अर्जुन। कर्म करने में तेरा अधिकार है।
उसके फलों के विषय में मत सोच।
इसलिए तू कर्मों के फल का हेतु मत हो और कर्म न करने के विषय में भी तू आग्रह न कर।

 

मैनेजमेंट सूत्र- भगवान श्रीकृष्ण ने इस श्लोक में यह सन्देश दिया है। कर्म की निरंतरता ही सफलता का मन्त्र है ,हमें अपने कर्म को पूरी निष्ठा और ईमानदारी से करना चाहिए , और फल को ईश्वर पर छोड़ देना चाहिए। और कर्म पर ही केंद्रित रहना चाहिए यदि कर्म करते समय फल की इच्छा मन में होगी तो आप पूर्ण निष्ठा से साथ वह कर्म नहीं कर पाओगे। निष्काम कर्म ही सर्वश्रेष्ठ परिणाम देता है। अक्सर हम जल्दी रिजल्ट प्राप्त करने के चक्कर में कुछ ऐसे कदम भी उठा लेते है जो हमें नहीं उठाने चाहिए। लक्ष्य से भी भटक जाते है। हमें कर्म को केंद्र में रखना चाहिए और लक्ष्य पर बढ़ना चाहिए।

 

 

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