62 वर्षीय लक्ष्मण राव जो अब तक 24 किताबें लिख चुके है , जिनमे से 12 अभी तक प्रकशित हो चुकी है , और उन्हें अपनी किताब \” रामदास \” के लिए इंद्रप्रस्थ साहित्य भारती पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। वो अपने गुजारे के लिए दिल्ली में हिंदी भवन के पास 25 वर्षों से चाय (Chai)का खोखा चला रहे है।
लक्ष्मण राव बेशक पेट पालने के लिए बेशक चाय की छोटी सी दुकान चलाते है पर उनका असली परिचय चाय वाला नहीं एक लेखक का है , 42 वर्ष की आयु में स्नातक की डिग्री प्राप्त करने वाले लक्ष्मण राव हर रोज़ 100 कि मी साइकिल चलाते है और लोगो को अपनी किताबों से परिचित करवाते है। उन्होंने 24 किताबें लिखी है जिनमे उपन्यास , नाटक , भारतीय समाज का विश्लेषण और राजनीती शामिल है।
वो अमरावती (महाराष्ट्र ) के एक गांव के रहने वाले है , जिसे उन्होंने 1975 में छोड़ दिया था , वो अपने पिता से 40 रूपये और अपनी 10 वीं की मार्कशीट लेकर घर से चल पड़े थे। दिल्ली आने के बाद उन्होंने कई प्रकार के छोटे मोटे काम किये और बाद में वो एक चाय बेचने वाले के रूप में स्थापित हो गए। उन्हें चाय बेचना एक लेखक से ज्यादा फायदे का काम लगता था। लोग बेशक उन्हें चाय बेचने वाले के रूप में जानते हो जो एक टीन की केतली और कांच के कुछ गिलास के साथ दिल्ली के फुटपाथ पर अपना गुजारा करता हो , पर उनकी सही पहचान एक लेखक की है , काफी संघर्ष के बाद उन्होंने अपनी पहली पुस्तक \”नई दुनिया की नई कहानी \” 1979 में प्रकाशित की। उनके सभी जानने वाले उन्हें लेखक जी के नाम से सम्बोधित करते है और यह सम्बोधन सुनकर लक्ष्मण राव खुद को गौरवान्वित महसूस करते है।
उन्हें जब भी वक़्त मिलता है वो अपनी कलम लेकर लिखना शुरू कर देते है लिखना शुरू से ही उनके जीवन का अहम हिस्सा रहा है। जीवन के इतने कठिन संघर्ष के बावजूद लक्ष्मण राव ने कभी अपने अंदर के लेखक को मरने नहीं दिया। और अपने अंदर लिखने का जज्बा हमेशा कायम रखा। पाठकों तक अपने द्वारा लिखी हुई किताबों को पहुंचाने की चाहत में वो हर रोज़ अपनी साइकिल से दिल्ली के एक छोर से दूसरे पर स्थित स्कूलों , कॉलेज ओर पुस्तकालयों तक का सफर तय करते हैं।
उनकी 12 किताबें (2015 ) प्रकाशित हो चुकी है और कुछ किताबें पुनर्मुद्रण में है। आज उनका एक फेसबुक पेज भी है जिसे उनका बेटा चलाता है , उनकी पुस्तकें Flipkart और amazon जैसे ऑनलाइन शॉपिंग पोर्टल्स पर भी उपलब्ध है।