चाणक्य के 8 सूत्र जो कामयाबी के लिए बहुत जरुरी है।

आचार्य चाणक्य भारतीय इतिहास के महान नामों में से एक है , आज भी पूरा विश्व उनके दिखाए मार्ग का अनुसरण करता है ,आचार्य चाणक्य एक महान दार्शनिक ,पुजारी और मौर्य साम्राज्य के राजनितिक मार्गदर्शक थे , उन्होंने मौर्य साम्राज्य की नीवं रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। उनकी सीख  , जिसे विश्व चाणक्य नीति के नाम से भी जनता है , पूरी दुनियां में मैनेजमेंट के  रूप में पढ़ाया जाता है  , यहाँ हम आचार्य के द्वारा दी गयी 8 चुनिंदा सीख का वर्णन कर रहें है , और बता रहें है आज के इस युग में भी वो बातें कितनी उपयोगी है।

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अर्थ : धन , आत्मा , जीवन , शरीर  ये चीज़े समय के साथ चली जाती है , केवल धर्म ही बचता है।

सन्देश :  यहाँ धर्म से अर्थ किसी सम्प्रदाय से नहीं लिया गया है , आचार्य चाणक्य के अनुसार व्यक्ति को अपने कर्म पथ पर  जीवन के आदर्शों के अनुसार काम करना चाहिए, क्योंकि समय से साथ सब कुछ नष्ट होने वाला है  , पर आपके आदर्श आपकी अच्छाई  हमेशा आपके पास रहेगी।

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अर्थ : आचार्य कहते है , अन्न और जल का दान सबसे बड़ा दान होता है , द्वादशी सबसे पवित्र दिन होता है ,गायत्री मंत्र सबसे महान मन्त्र होता है और माँ सब देवताओं में सबसे महान होती है , अर्थात माँ ही सबसे महान होती है।

सन्देश  :   आचार्य चाणक्य ने इस श्लोक में हमें , अपने बुजुर्गो का सम्मान करने का सन्देश दिया है , उनके अनुसार हमें अपने जीवन अपनी माँ का सबसे अधिक  सम्मान करना चाहिए , उनकी ईश्वर के समान पूजा करनी चाहिए।  माँ के तुल्य इस संसार में दूसरा कोई नहीं।

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आचार्य कहते है :- सांप के डंक में जहर है , मधुमक्खी के मुंह में जहर होता है, बिच्छू की पुंछ में जहर होता है , पर एक दुष्ट व्यक्ति इन सब में खतरनाक है ,क्योंकि उसके सारे शरीर में जहर होता है। 

सन्देश  :  हमें दुष्ट व्यक्तियों से संभलकर रहना चाहिए , क्योकि सांप , मक्खी और बिच्छू की प्रवृति तो हम सभी को पता है की वो जहरीले है , पर दुष्ट व्यक्ति इन सबमे ज्यादा घातक होता है जो आपको कभी भी मात दे सकता है।

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अर्थ  :  दरिद्रता,व्याधि,दुःख, कैद , और बुरी आदते ये सभी हमारे कर्मों का फल है। आप जैसा बोते हो वैसा ही काटोगे

सन्देश  :  हमें अपने जीवन के हर व्यवहार को सावधानी पूर्वक और नियमों का पालन करते हुए करना चाहिए , हमारे जीवन में जो भी कष्ट है आते है वो हमारे कर्मो का फल है , तो हमें बुरे कर्मों से बचना चाहिए ।

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अर्थ : आचार्य कहते है की : जैसे स्वादिष्ट भोजन पेट ख़राब होने की स्थिति में विष के सामान हो  जाता है  , वैसे ही जब तक आप अपनी योग्यताओं , गुणों का अभ्यास नहीं करोगे तो वो भी आपके किसी काम की नहीं। 

सन्देश  :  जीवन निरंतर सीखने की प्रक्रिया है , पर हम जो सीखते है अगर उसका अभ्यास नहीं करते तो भी वह कला या गुण हमारे किसी काम का नहीं रहता है , अतः हमें अपनी स्किल और ज्ञान का निरंतर अभ्यास करते रहना चाहिए।  जिससे हमारा ज्ञान बढ़ेगा और आवश्यकता पड़ने पर हमारे काम आएगा।

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अर्थ : आचार्य कहते है , जो व्यक्ति गड़बड़ , लड़ाई झगडे और सूखे जैसी आपदा और  जब कोई दुष्ट शत्रु पास होने पर वहां से चले जाते है , वो अपने जीवित रहने की सम्भावनाये बढ़ा लेते है। 

सन्देश :     आचार्य कहते है , समझदार व्यक्ति को समय की परख होनी चाहिए  और जीवन में आने वाले जोखिमों का पूर्वाभास होते है अपनी आप को सुरक्षित कर लेना चाहिए।  जो व्यक्ति समय का अनुमान लगा के अपने जीवन की रणनीतियां बनाते है वो ही सफल होते है।

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अर्थ   :  आचार्य के अनुसार , विदेश में जब आप घर से बाहर हो तो आपकी विद्या (ज्ञान ) ही आपकी सच्ची मित्र है , घर में पत्नी सबसे सच्ची मित्र है , बीमार व्यक्ति के लिए ओषधि सबसे बड़ी मित्र है , और मृत्यु के बाद आपके अच्छे कर्म ही आपके मित्र है। 

सन्देश : यहाँ आचार्य  का तात्पर्य है कि मनुष्य के सच्चे मित्र उसका ज्ञान उसकी पत्नी और उसके कर्म है। तो उसे अपने इन्ही मित्रों पर सबसे अधिक विश्वाश करना चाहिए। और किसी पे नहीं।

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अर्थ  :  जो वक़्त बीत चुका हो उसका पछतावा करने से कोई लाभ नहीं  , ऐसे भविष्य के बारे में सोच कर भी चिंतित नहीं होना चाहिए।  तो हमेशा वरहमान में रहना अच्छा है।  ये भविष्य को भी चमका देगा

सन्देश :  मनुष्य को पिछली बातें भुला देनी चाहिए और भविष्य की व्यर्थ चिंता नहीं करनी चाहिए।  क्योंकि जो बीत चूका है उसे हम बदल  नहीं सकते और जो घटा ही नहीं उसे लेकर चिंतित होना बेकार है।  इसलिए मनुष्य को वर्तमान में जीने की आदत डालनी चाहिए।

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