दिवाली पास आते ही एक प्रश्न अधिकतर कर्मचारियों के दिमाग में आना शुरू हो जाता है पर वो है कि “ दिवाली बोनस (Diwali Bonus) कब मिलेगा ?” लेकिन कीस आपने कभी सोचा है कि आखिर होता है क्या ये दिवाली बोनस ? ये कब और कैसे शुरू हुआ ? जानते है दिवाली बोनस के विषय में ऐसी ही कुछ अनजानी बातें |
मुंबई में बहुत पहले टेक्सटाइल और फ्लौर मिल में काम करने वाले लोगों को उनकी तनख्वाह वीकली मिलती थी | इसके अनुसार उस समय के कामगारों को वर्ष में 52 बार सैलरी मिलती थी | ये हफ्ते में सैलरी मिलने वाला प्रोसेस अंग्रेजों ने समाप्त करा कर भारत में मंथली सैलरी का कांसेप्ट लागू किया |
जेब सैलरी महेने मने एक बार मिलने लगी तो कर्मचारियों को केवल 48 हफ्ते की सैलरी मिलनी शुरू हो गयी | ऐसा इसलिए हुआ क्यूंकि वर्ष में 12 महीने होते है और एक महीने में केवल 4 हफ्ते | जिसके अनुसार अब लोगों को 52 के बदले केवल 48 हफ़्तों की सैलरी मिलनी शुरू हो गयी |
जब कर्मचारियों को अपने नुक्सान का अंदाजा हुआ तो सन 1930 से 1940 तक लोगों ने बहुत विरोध प्रदर्शन किये | ये सभी प्रदर्शन बहुत organised तरीके से पुरे महाराष्ट्र में किये गए | और क्रमचारियों का ऐसा केना एक हद तक सही भी था क्यूंकि उन्हें पुरे एक महीने की तनख्वाह का नुकसान हो रहा था | और इन प्रदर्शनों से ब्रिटिश लोगों को भी काफी नुक्सान झेलना पड़ रहा था |
इसी के चलते ब्रिटिश लोगों ने एक उपाय निकला | ब्रिटिश सरकार के लोगों ने उस समय के सभी मजदुर संघटनो के नेताओं से बात की, कि किस प्रकार इस 13वें महीने की सैलरी लोगों में बांटी जाएँ | चूँकि दिवाली देश का सबसे बड़ा त्योहार है इसलिए ये निर्णय लिया गया कि कामगारों की 13 वें महीने की तनख्वाह उन्हें दिवाली के महीने में दी जायेगी |
ये वो ही 13वीं सैलरी है जिसे हम दिवाली बोनस के नाम से जानते है | इसे 30 जून सन 1940 से लागू किया गया | और तब से आज तक इस सैलरी ने बहुत लोगों की दिवाली में चार चाँद लगाये है |
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