पंतजलि की चुनोती के आगे Dabur ने बदली अपनी रणनीति

डाबर की स्थापना सन 1884 में कोलकाता में  S.K. Burman द्वारा की गयी | उस समय ये कंपनी सिर्फ आयुर्वेदिक प्रोडक्ट्स ही बनाती थी | कंपनी की स्थापना के लगभग 113 वर्ष बाद Dabur  की मैनेजमेंट ने नॉन आयुर्वेदिक प्रोडक्ट्स भी निकलने का निर्णय लिया | सन 1997 में डाबर ने STARS के नाम से एक एक प्रोजेक्ट शुरू किया | इस प्रोजेक्ट की फुल फॉर्म थी “ Strive to Achive Record Successes). इसी प्रोजेक्ट के अंतर्गत रियल फ्रूट जूस को Dabur ने मार्किट में उतारा |

इसलिए ऐसा हो रहा है कि पिछले दो दशको से जब भी डाबर की टॉप मैनेजमेंट किसी नये प्रोडक्ट को मार्किट में उतारने की सोचती है सबसे बड़ा प्रश्न ये उठता है कि ये नया प्रोडक्ट आयुर्वेदिक होगा या नॉन आयुर्वेदिक |

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वास्तव में 1997 के बाद से ही डाबर ने अपना अधिक फोकस नॉन आर्युवेदिक प्रोडक्ट्स पर अधिक लगाया है | इसका अंदाजा आप सिर्फ इसी बात से लगा सकते है कि कंपनी के Rs. 8,436 करोड़ के टोटल revenue का 11% सिर्फ फ़ूड बिज़नस से Dabur को मिलता है | कंपनी की टोटल सेल्स का 40% नॉन आर्युवेदिक प्रोडक्ट्स से ही आता है | डाबर ने सिर्फ फ़ूड प्रोडक्ट्स की नॉन आर्युवेदिक नहीं बनाये बल्कि होम केयर व पर्सनल केयर से जुड़े बहुत से प्रोडक्ट्स भी डाबर बना रहा है |

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अभी तक डाबर नॉन आर्युवेदिक प्रोडक्ट्स पर अधिक भरोसा कर रही थी लेकिन पंतजली के प्रोडक्ट्स की बढ़ती लोकप्रियता ने डाबर को अपनी रणनीति बदलने के लिए मजबूर कर दिया है | डाबर के सीईओ सुनील दुग्गल के अनुसार , “भविष्य आयुर्वेदिक प्रोडक्ट्स के द्वारा  ही संचालित किया जायेगा |” सुनील दुग्गल ने Dabur को 1995 में ज्वाइन किया और 2002 में डाबर के सीईओ बनें | आयुर्वेदिक प्रोडक्ट्स पर अधिक ध्यान देने के लिए कंपनी अपनी हर्ब (जड़ी बूटियों) की खेती को दोगुना करने पर विचार कर रही है |

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डाबर के आयुर्वेद की और अधिक रुझान का मुख्य कारण पंतजलि ही है | इस बात को dabur के सीईओ ने भी माना है | इसके अलावा डाबर के साथ की दुसरी कंपनियां भी आयुर्वेद की और जा रही है | बाकी के कारण कुछ भी रहे हो लेकिन पंतजलि की बढ़ती लोकप्रियता के चलते बहुत सी कंपनी को बड़े बदलाव करने पड़ रहे है |

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